भारतीय राजव्यवस्था से सम्बंधित जानकारी | सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश, अंतर्राज्यीय परिषद्

दोस्तों SpeedGK आज आपके लिए लेकर आया है भारतीय राजव्यवस्था से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न जो प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते रहते हैं जैसे- UPSC, UPPSC, UPSSSC, SSC, Bank, Railway ऐसे कई exam है जिसमें राजव्यवस्था से सम्बंधित प्रश्नों को जरूर शामिल किया जाता है तो चलिए महत्वपूर्ण प्रश्नों को पढ़ना शुरू करते हैं|
 
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सर्वोच्च न्यायलय में तदर्थ न्यायधीश की नियुक्ति (Appointment of Adhoc Judge in Supreme Court)

संविधान के अनुच्छेद-127 में प्रावधान है कि मुख्य न्यायधीश राष्ट्रपति की पूर्व सहमती से उच्चतम न्यायालय में न्यायधीश के रूप में नियुक्ति किये जाने की योग्यता रखने वाले किसी उच्च न्यायलय के न्यायधीश को सम्बद्ध उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करके तब तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति कर सकता है जब उच्च न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए न्यायाधीशों की आवश्यकता हो |
 
इस प्रकार नियुक्ति किये गए न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय की सभी अधिकारिता,शक्तियों और विशेषाधिकार तब तक प्राप्त होंगें जब तक उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रूप में कार्य करता है|
 

अंतर्राज्यीय परिषद् का निर्माण (Creation of Interstate Council)

भारत राज्यों का संघ है इसलिए संविधान के निर्माण के समय ही यह जान लिया गया था कि केंद्र तथा राज्यों के मध्य अथवा राज्यों के बीच विवाद उत्पन्न होगा और इन विवादों का निपटारा करने के लिए एक प्राधिकरण होना जरूरी है| इस विचार को ध्यान रखते हुए अंतर्राज्यीय परिषद् का गठन तथा इस परिषद् के कार्यों के सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद-263 में प्रावधान किया गया है| 
इस अनुच्छेद के अधीन  राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वे इस परिषद् का गठन करे|
 

 संसद के लोकलेखा समिति के अध्यक्ष का मनोनयन (Nomination of the Chairman of the Public Accounts Committee of Parliament)

विधायिका तथा सरकार के कार्यों का संचालन तथा विधि से सम्बंधित महत्वपूर्ण पहलुओं के अध्ययन के लिए कुछ स्थायी तथा अस्थायी समितियां होती हैं|स्थायी समिति के अंतर्गत प्राक्कलन समिति,लोकलेखा समिति तथा सार्वजानिक उपक्रम समिति प्रमुख हैं|
 
लोकलेखा समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से तथा 7 सदस्य राज्यसभा से निर्वाचित होते हैं|राज्य सभा से निर्वाचित सदस्य सह सदस्य के रूप में होते हैं तथा इन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होता है|
  • कोई भी मंत्री इस समिति की सदस्यता के लिए निर्वाचित हो सकता है|
  • इसका कार्यकाल केवल एक वर्ष होता है|
  • यह भारत के लोकलेखा तथा नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन का निरीक्षण करती है|
  • इसके अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष विपक्ष पार्टी से करता है|

राष्ट्रपति पर महाभियोग (Impeach the President)

भारतीय संविधान में एक गणतंत्र देश की कल्पना की गयी है जिसके अनुसार राष्ट्राध्यक्ष का पद वंशानुगत नहीं होगा| 

राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया एवं उस पर महाभियोग चलाये जाने का प्रावधान संयुक्त राज्य अमेरिका से लिया गया है| 

भारतीय संविधान के भाग-5 अनुच्छेद-६१ के अंतर्गत राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है जिसकी सूचना 14 दिन तक देना अनिवार्य है|
 

न्यायिक पुनरीक्षण की संकल्पना (Concept of judicial review)

भारत में न्यायिक पुनरीक्षण की संकल्पना संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से ली गयी है|अनुच्छेद-137 के अनुसार उच्चतम न्यायालय को संसद या विधानमंडलों द्वारा पारित किसी अधिनियम तथा कार्यपालिका द्वारा दिए गए किसी आदेश की वैधानिक का पुनरीक्षण करने का अधिकार है|
 

राष्ट्रीय विकास परिषद् का उद्देश्य(Objective of National development of Council)

राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना 5 अगस्त 1952 को हुई | यह एक गैर संवैधानिक निकाय है जो केंद्र और राज्यों के बीच योजना आयोग के माध्यम से धन वितरण का अनुमोदन करता है | यह प्रस्तावित पंचवर्षीय योजनाओं को स्वीकृति प्रदान करता है |
 

नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति (Appointment of Comptroller and Auditor General)

नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाये जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थिति  मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन,राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है|
 

लोकसभा और राज्यसभा की संयुक्त बैठक (Joint meating of Loksabha and Rajyasabha)

यदि संसद के दोनों सदनों के बीच धन विधेयक को छोड़कर अन्य किसी विधेयक जिसमें वित्त विधेयक सम्मिलित हो उसे  पारित कराने को लेकर गतिरोध उत्पन्न हो गया है तो राष्ट्रपति अनुच्छेद-108  के तहत दोनों सदनों के बीच सहमति का हल ढूढने के लिए दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है|
 

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण और पंचायती राजव्यवस्था (Democratic Decentralization and Panchayati Raj System)

सामुदायिक विकास कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा के असफल होने के बाद पंचायत राज व्यवस्था को मजबूत बनाने की सिफारिश करने के लिए 1957 में बलवंत राज मेहता की अध्यक्षता में ग्रामोद्धार समिति का गठन किया|इस समिति ने भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राजव्यवस्था को स्थापित करने की सिफारिश की थी जो इस प्रकार है-
  1. ग्राम या नगर पंचायत 
  2. तहसील पंचायत 
  3. जिला पंचायत 
इस सिफारिश को 1 अप्रैल 1958 को लागू किया और इस सिफारिश पर राजस्थान राज्य की विधान सभा ने 2 सितम्बर 1959 को पंचायती राज अधिनियम पारित किया और इस अधिनियम के प्रावधानों के आधार पर 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज का उदघाटन किया गया|
 

प्रोटेम स्पीकर के कर्तव्य (Duties of Protem Speaker)

नव निर्वाचित सदन में लोक सभाध्यक्ष के चुनाव से पूर्व सदन के सामान्यतः सर्वाधिक वरिष्ट सदस्य को प्रोटेम स्पीकर के रूप में चुना जाता है जो कि नव निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाता है तथा स्पीकर के चुनाव तक सदन की अध्यक्षता करता है|
 

भारत का मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Cheif Election Commissioner of India)

मुख्य निर्वाचन आयुक्त अपने पद ग्रहण की तिथि से 6 वर्ष के लिए नियुक्त किया जाता है लेकिन यदि वह 6 वर्ष की अवधि के अंतर्गत 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेता है तो वह पद मुक्त हो जाता है|वह अपनी पदावधि के दौरान राष्ट्रपति को त्यागपत्र देकर पद मुक्त हो सकता है या संसद द्वारा पारित संकल्प योग पर हटाया जा सकता है|
 

भारतीय संविधान की आत्मा (Soul of India Constitution)

अनुच्छेद-32 संविधान के भवन की नीव का पत्थर माना जाता है|इस अनुच्छेद पर टिप्पणी करते हुए डॉ० भीमराव अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था "यदि मुझे यह कहा जाय कि मै संविधान के किस अनुच्छेद सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ ऐसा अनुच्छेद जिसके बिना संविधान व्यर्थ हो जायेगा तो मै और किसी अनुच्छेद को नहीं अनुच्छेद-32 को ही इंगित करूँगा|यह संविधान की आत्मा है",उसका ह्रदय है|

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission)

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन 10  दिसम्बर 1993 में हुआ था इसमें राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत न्यायधीश को अध्यक्ष बनाया जाता है| 
सबसे बड़ी बात यह है  कि यह एक सांविधिक निकाय है यानी कि मानवाधिकार को संवैधानिक दर्जा नहीं प्राप्त है| 
ये एक बहुसदस्यीय संस्था है,जिसमें एक अध्यक्ष व चार सदस्य होते हैं जिसमें एक सदस्य उच्चतम न्यायालय अथवा सेवानिवृत न्यायाधीश,उच्च न्यायालय का कार्यरत या सेवानिवृत मुख्यन्यायधीश होना चाहिए|

आयोग का प्रधान कार्यालय दिल्ली में है|

दोस्तों अगर आपको पढ़ने में नॉलेज मिला हो और इसी तरह के महत्वपूर्ण बिन्दुओं के बारे में जानना चाहते हैं तो हमें comment box बतायें और यदि इस blog में आपको किसी भी प्रकार की त्रुटि लगे तो भी हमें comment box में जरूर बताएं हम उसमें सुधार करने का प्रयास अवश्य करेंगे |
 

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