UPTET Bal vikas ke Importent Prashn in Hindi | baal vikas par adharit samajik parivesh

 बाल विकास का अर्थ बालक एवं बालिकाओं का विकास है इसके अंतर्गत अबोध बच्चों के लालन-पालन एवं विकास का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जिसमें बालक एवं बालिका दोनों समाहित हैं| बच्चे का पहला शिक्षक माता होती है जो जन्म लेने से लेकर बड़े होने तक किसी भी  प्रकार के कार्य को करने की प्रक्रिया सिखाती है| यह दूध पिलाने से लेकर सोने, चलने, हँसने आदि सभी रूप में होता है| माँ का दूध पीकर बच्चा पौष्टिक आहार एवं निरोगता प्राप्त करता है|

UPTET Bal Vikas
Bal Vikas

यदि बच्चे का मानसिक विकास उसके शरीर की तुलना में उम्र के अनुसार कम हो तो बच्चे का मनोवैज्ञानिक परीक्षण करा कर शारीरिक एवं मानसिक विकास की विसंगति दूर करने का प्रयास करेंगे|बच्चों के शारीरिक अभिवृध्दि एवं मानसिक विकास के कारण उनके अंदर होने वाले पूर्व परिवर्तन लुप्त हो जाता है |

बालकों में राष्ट्रीयता के विकास हेतु  शिक्षकों को विद्यालय में राष्ट्रीय कार्यक्रमों को आयोजित करना चाहिए| भारत में प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला 1916  कलकत्ता में स्थापित की गयी थी जिसका श्रेय एन.एन.सेन गुप्त को दिया जाता है| |3 वर्ष या उससे ऊपर की उम्र के बच्चे को सिखाने के लिए परिवेश में उपलब्ध सामग्री द्वारा खेल-खेल में सिखाना विधि सर्वाधिक उपयोगी होगी|

 मिल्टन के अनुसार- 'बचपन' विकास की प्रक्रिया मनुष्य के भावी जीवन का उसी प्रकार आभास देती है जैसे सुबह पूरे दिन की स्थिति स्थिति का संज्ञान देती है इसका मतलब प्रारंभिक जीवन के गुण,परिस्थितियां एवं पर्यावरण भावी जीवन की गति निर्धारित करते हैं |

 बाल विकास यदि सही सदाचरण एवं निष्ठा के अंतर्गत हुआ है तो भावी जीवन उत्तम होता है |यदि कोई बच्चा अपनी वय के प्रतिकूल आचरण करते हुए विलक्षण प्रदर्शन करे तो अत्यधिक बुद्धि गुणांक के प्रभाव से विलक्षण बुद्धि प्रकृति प्रदत्त होती है| किसी-किसी बच्चे में बौद्धिक गुणांक अत्यंत उच्च कोटि का होता है जो प्रकृति प्रदत्त है,ऐसे प्रतिभाशाली जीनियस कहलाते हैं| 

प्रायः थोड़े अंतर के साथ उम्र एवं शरीर के समानुपातिक ढंग से बच्चों में मानसिक विकास कुछ अंतर के साथ एक जैसा होता है इसलिए कुछ बच्चे तेजी से सीखते हैं लेकिन विसंगति अधिक होने पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण जरूरी होता है |

बालक और बालिकाओं के विकास की दर अलग-अलग होती है क्योंकि दोनों का शारीरिक एवं मानसिक विकास प्रकृति संरचना के अनुसार समानुपातिक ढंग से होता है| बच्चों को चलना सीखने के लिए सबसे पहले उसको आश्रय देकर खड़ा होने का साहस प्रदान करके चलना सीखाना चाहिए|छोटे बच्चों को अभिभावक बच्चे को सामुदायिक रूप से नए अनुभव सीखने के लिए स्कूल भेजते हैं| छोटे बच्चों को अन्य बच्चों के साथ रहकर स्कूल में नए अनुभवों जैसे-कतार में खड़ा होना,गीत गाना,पानी की बोतल लाइन में रखना और नमस्कार करना आदि तौर तरीके सीखने हेतु भेजा जाता है| 

प्रायः देखा गया कि बच्चे घर में ज्यादा प्यार पाकर सीखते कम है मनमानी ज्यादा करते हैं लेकिन स्कूल में शिक्षक के द्वारा बताये जाने पर समूह में रहकर बेहतर सीखते हैं| बच्चे हमेशा खेल सिखाने वाले, सुन्दर अच्छे कपड़े पहने,प्यारी बातें बोलने वाली टीचर पसंद करते हैं| 

शोध अध्ययन से पता चला है कि बच्चों को चटक,चमकीले एवं लाल,पीला,गुलाबी,हरा रंग ज्यादा पसंद आते हैं| बच्चों को कार्टूनों द्वारा सिखाये जाने में आसानी होती है क्योंकि जब बच्चा कार्टून में छोटे-छोटे जानवरों को उछलते-कूदते और बोलते देखता है तो उसे उनमें प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है|

यदि आपकी कक्षा में कोई शर्मीला बच्चा आ जाए तो उसको सीखने के लिए बच्चे में आत्मविश्वास बढाने के लिए उसे सभी बच्चों के साथ मिलने-जुलने, अपना लंच बाटने,सबके साथ गाने और खेलने को प्रोत्साहित करेंगे| 

बालिकाओं बाल्यावस्था में भाषिक विकास बालकों से उच्च रहता है| यदि कोई बच्चा एक ही प्रकार की गलती बार-बार करे तो बच्चे को सही प्रक्रिया बताकर उसे बार-बार लिखित रूप से दोहराने को कहेंगे|

 अधिगम की तीव्रता,अपेक्षाकृत स्थिर विकास प्रक्रिया तथा यथार्थवादी द्रष्टिकोण का प्रादुर्भाव बाल्यावस्था की प्रमुख विशेषताएं हैं| सीखने की प्रक्रिया में बच्चे को शैक्षिक कार्य करने के लिए सबसे बड़ी कठिनाई अक्षरों को पहचानकर लिखने में होती है| 

मनोवैज्ञानिको के द्वारा मानव विकास की यात्रा के सात अवस्थाओं को निर्धारित किया है जो निम्नलिखित हैं |

 अनुमानित आयु तथा अवधि         

विकास की अवस्थाएं

स्कूल जाने की अवस्था

 जन्म से दो वर्ष तक की आयु

शैशवकाल

 

 दो वर्ष से छह वर्ष तक की आयु

पूर्व बाल्यावस्था

पूर्व प्राथमिक

 छह वर्ष से बारह वर्ष

उत्तर बाल्यावस्था

प्राथमिक

 बारह वर्ष से अट्ठारह वर्ष तक

किशोरावस्था

माध्यमिक तथा वरिष्ठ माध्यमिक

 अट्ठारह से चालीस वर्ष तक

यूवा-प्रौढावस्था

 

 चालीस सेपैंसठ वर्ष तक

परिपक्व प्रौढ़ावस्था

 

 पैंसठ से ऊपर

वृद्ध-प्रौढ़ावस्था अथवा वृद्धावस्था

 

अध्यापक का व्यवहार विद्यार्थी के व्यवहारों और उसकी अभिवृत्तियों को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है| अध्यापक को यह जरूरी होता है कि वह अपने बच्चो के साथ प्रभावी ढंग से व्यवहार करे, जिससे बच्चों की वांछित अनुक्रियाओं को ही प्रोत्साहन मिले, साथ ही अवांछित अनुक्रियाओं को रोका भी जा सके| इसलिए एक अध्यापक का अपने बच्चों के साथ व्यवहार, उन्हें संतुष्ट करने वाला होना चाहिए |

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