भारतीय संविधान में वे मूलभूत अधिकार जो भारतियों को दिए गए है, उन्हें हम मौलिक अधिकार कहते हैं |ये अधिकार हमारे जीवन में आवश्यकताओं को पूरा करने में बहुत जरूरी हैं| मौलिक अधिकार का जन्म सबसे पहले ब्रिटेन में हुआ था|भारत में मौलिक अधिकारों को अमेरिका से लिया गया है| इसे 'भारतीय संविधान का मैग्नाकार्टा' भी कहा जाता है|
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Samvidhan me Maulik Adhikar
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भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान में छः प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है |
1.समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14 से 18 के बीच )
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2. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद-19 से 22 के बीच)
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3. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद-23 से 24 के बीच)
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4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद-25 से 28 बीच)
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5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद-29 से 30 के बीच)
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6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद-32 )
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नोट:- पहले मौलिक अधिकारों की संख्या 7 थी लेकिन वर्तमान में मौलिक अधिकारों की संख्या 6 है क्योंकि संपत्ति के अधिकार को 44वें संविधान संसोधन 1978 द्वारा मौलिक अधिकार (भाग-3) से हटाकर संविधान के अनुच्छेद 300(क) में रखा गया है|
आइये जानते हैं इन अधिकारों को लेकर हमारे संविधान में क्या चर्चा की गयी और भारतीयों के लिए ये मौलिक अधिकार किस प्रकार भूमिका निभाते हैं|
1.समानता का अधिकार (Right to Equality)
हमारे संविधान में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्रति समान संरक्षण प्रदान किया जाएगा और संरक्षण के मामले को लेकर वह सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट भी जा सकता है|
समानता के बारे में वर्णन संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 के बीच किया गया है|
समानता का मतलब है प्रत्येक व्यक्ति उसकी जरूरत का ख्याल रखते हुए समान व्यवहार करना तथा प्रत्येक व्यक्ति को उसकी क्षमता के अनुसार काम के समान अवसर उपलब्ध करवाना है|कई बार अवसर की समानता सुनिश्चित करने के लिए कुछ वंचितों को विशेष अवसर प्रदानकिया जाता है ,जिसे आरक्षण कहा जाता है|आरक्षण समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है|
1. कानून के समक्ष समानता : भारतीय संविधान में कानून के समक्ष समानता का वर्णन संविधान के अनुच्छेद-14 में किया गया है जिसका मतलब किसी भी राज्य कोई भी कानून या फिर न्यायालय द्वारा किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा|
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2. धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध : भारतीय संविधान में इसका वर्णन अनुच्छेद-15 में किया गया है जिसका अर्थ है कि कोई भी राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा|
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3. सरकारी पदों की प्राप्ति के लिए अवसर की समानता : अवसर की समानता का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद-16 में किया गया है जिसका मतलब है किसी भी व्यक्ति के लिए व्यवसाय करने के लिए समान अवसर प्रदान किया जाना चाहिए|
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4. अस्पृश्यता का निषेध : भारतीय संविधान में इसका वर्णन अनुच्छेद-17 में किया गया है जो किसी भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति में जन्म लिया हो हमारे समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव, छुआ-छूत से भेद-भाव करने का अधिकार नहीं है|
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5. उपाधियों का अंत : भारतीय संविधान में इसका वर्णन अनुच्छेद-18 में किया गया है जिसका मतलब है कि राज्य,सेना या फिर विधि से सम्बंधित सम्मान के अलावा और कोई भी उपाधि प्रदान नहीं करेगा| भारत का कोई भी नागरिक विदेशी राज्य से कोई भी उपाधि स्वीकार नहीं करेगा|
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2.शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
भारतीय संविधान में नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान किया गया है जिससे किसी भी नागरिक को शोषण से बचाया जा सके|शोषण के विरुद्ध अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में किया गया है| भारतीय मानव जाति के अवैध व्यापार का निषेध प्रदान करता है |संविधान में बेगार या जबरन काम कराने पर भी निषेध किया गया है| इस अधिकार के अंतर्गत यह विशेष प्रावधान किया गया है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे से काम नहीं कराया जा सकता |इसी को आधार बनाकर बालश्रम रोकने के लिए कानून बनाये गए हैं|
3.स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत प्रमुख रूप से छः अधिकार प्रदान किये गये है| इनका वर्णन संविधान के अनुच्छेद 19 में किया गया है|
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- शांतिपूर्ण ढंग से इकठ्ठा होने की स्वतंत्रता
- संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता
- देश में कहीं भी आने जाने की स्वतंत्रता
- देश के किसी भी भाग में रहने-बसने की स्वतंत्रता
- किसी भी काम को करने,कोई व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता
4.धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
संविधान में स्वतंत्रता के अंतर्गत धार्मिक अधिकार की बात कही गयी है फिर भी इस अधिकार को स्पष्ट करने के उद्देश्य से अलग दर्ज किया गया है| इस अधिकार के अनुसार हर किसी को अपना धर्म मानने और उस पर आचरण करने तथा प्रचार करने का पूरा अधिकार प्राप्त है|
धर्म और स्वतंत्रता का अधिकार का वर्णन संविधान के 25 से 28 के बीच किया गया है|
यदि किसी शैक्षिक संस्थान का संचालन कोई निजी संस्थान करती है,तो वहां के किसी भी व्यक्ति को प्रार्थना में हिस्सा लेने या किसी धार्मिक निर्देश का पालन करने के लिए जबरन मजबूर नहीं किया जा सकता है|
5.सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural and Educational Right)
नागरिकों को किसी विशेष भाषा या फिर सांस्कृतिक वाले किसी समूह को अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने का पूरा अधिकार है| किसी भी सरकारी या सरकारी अनुदान पाने वाले शैक्षिक संस्थान में किसी नागरिक को धर्म या भाषा के आधार पर दाखिला लेने से नहीं रोका जा सकता है|सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद का शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है|
सांस्क्रति और शैक्षिक अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के बीच किया गया है|
6.संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
संविधान में जो भी मौलिक अधिकार भारतियों को प्रदान किये गए है उन्हें लागू किया जा सकता सकता है| संवैधानिक उपचारों का वर्णन अनुच्छेद 32 में किया गया है| नागरिकों को इन अधिकारों को लागू कराने और उन्हें मांगने का पूरा अधिकार है,जिसे संवैधानिक उपचारों का अधिकार कहा जाता है| यह अधिकार अन्य अधिकारों को प्रभावी बनाता है| किसी भी अधिकार का उल्लंघन होने की स्थिति में व्यक्ति अपने अधिकार को प्राप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है| न्यायालय उसके अधिकार को सुनिश्चित करने की व्यवस्था करेगा| डॉ० भीमराव अम्बेडकर जी ने संवैधानिक उपचार के अधिकारों को हमारे संविधान की 'आत्मा और हृदय' कहा था|
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