UPTET/CTET 2024 - पियाजे, कोहलबर्ग एवं वाईगोत्सकी की वैचारिक प्रक्रिया

UPTET/CTET 2024:- दोस्तों इस पोस्ट में पियाजे, कोहाल्बर्ग एवं वाइगोत्सकी के महत्वूर्ण बिन्दुओं को शामिल किया गया है तथा इनसे सम्बंधित प्रश्नोत्तर भी दिए गए है जो टीचिंग की परीक्षा जैसे- CTET, UPTET, Bihar TET, Jharkhand TET, Super TET, B.Ed आदि  में अवश्य पूछे जा चुके हैं इसलिए आप सभी बिन्दुओं को ध्यान से पढ़ें जिससे आप अपनी परीक्षा को आसानी से पास कर सकें|
UPTET/CTET 2023 - पियाजे, कोहलबर्ग एवं वाईगोत्सकी की वैचारिक प्रक्रिया
UPTET/CTET -2024

सामाजिकता के विकास का कोर सिस्टम 

कोर सिस्टम की अवधारणा को विस्तार से समझे तो वैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चे विशेष प्रकार की सूचनाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं जिसके माध्यम से वे अपना मानसिक विकास करते हैं| इस प्रकार की संवेदी सूचनाओं में संख्याओं की गणना जिनमे छोटी संख्याओं का क्रम शामिल है, द्रष्टि अनुभव के आधार पर अनुभव प्राप्त करना जैसे भाषा का ज्ञान, प्रतीकों के तात्पर्य एवं आवश्यकता के आधार पर पशुओं और पौधों से प्रमुख हैं | इन सभी में सबसे संश्लिष्ट अनुभव ज्ञान है जिसे विख्यात दार्शनिक एवं भाषाविद नौ चौमस्की ने प्रतिपादित किया है| यही नहीं मानवीय मष्तिस्क का विकास,इस सामान्य प्रारूपों से भी आगे बढ़कर है जैसे कि बच्चों को अपनी जन्मजात क्षमता के बारे पता तो नहीं होता पर वह इसको जानने में समर्थ हो जाते हैं|

पियाजे का सामाजिकता के विकास का सिद्धांत 

स्विट्जरलैंड के जीन पियाजे का विश्वास था कि व्यक्ति विकास कई चरणों से होकर गुजरता है एवं हमेशा नयी तथा अधिक संश्लिष्ट चीजों के बारे में सोचता है| हालाँकि उनके बहुत से विचारों को वैज्ञानिको का समर्थन नहीं मिला जैसे कि उनका विचार कि बच्चे संख्याएं नहीं संरक्षित कर पाते क्योंकि नए सेट के लोगों को लेकर प्रयोग करने पर बच्चों ने उसी तरह प्रतिक्रिया व्यक्त की जैसे वयस्क करते हैं|

कोहाल्बर्ग का क्रमिक नैतिक विकास का सिद्धांत 

इस सिद्धांत को मूलतः पियाजे ने ही प्रतिपादित किया था लेकिन  इस पर व्यवस्थित खोज एवं शोध लॉरेंस कोहलबर्ग ने शिकांगों विश्वविध्यालय में किया| इस सिद्धांत के अनुसार नैतिक चिंतन जो नैतिक व्यवहार का मूल है 6 क्रमिक स्तरों में विकसित होता है क्योंकि इसका सम्बन्ध न्याय से जुड़ा होता है|

पियाजे की नैतिक विकास की अवस्थाएं 

पियाजे ने बालक के नैतिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन करने के लिए साक्षात्कार विधि का प्रयोग किया| उनके अनुसार इसकी चार अवस्थाएं होती हैं|

  1. प्रतिमानहीन 
  2. परायत्तता- आप्तवचन 
  3. परायतत्ता- पारस्परिकता 
  4. स्वयत्तता- किशोरावस्था 

1. प्रतिमाहीन- प्रथम 5 वर्ष तक 

पियाजे द्वारा इस अवस्था को प्रतिमाहीन बताया है जो कानून - विहीन होती है| इस अवस्था में बालक का व्यवहार न तो नैतिक और न ही अनैतिक होता है बल्कि यह अधिनैतिक या निति- निरपेक्ष होता है| यही कारण है कि बालकों का व्यवहार नैतिक मापदंड द्वारा निर्देशित नहीं होता है| उनके व्यवहार के नियंत्रक सुख और दुःख होते हैं|

2. परायत्तता- आप्तवचन 

नैतिक विकास की यह अवस्था वयस्कों द्वारा स्थापित किये गये कृत्रिम परिणामों द्वारा अनुशासित होने के रूप में परिभाषित की जा सकती है| नैतिक विकास की यह अवस्था ब्रम्ह सत्ता द्वारा नियंत्रित होती है| इनाम तथा सजा उनके नैतिक विकास को नियंत्रित करते हैं|

3.परायत्तता- पारस्परिक 

इस अवस्था में सैम-आयु वर्ग या वयस्कों के साथ सहयोग की नैतिकता होती है| यह अवस्था परायत्तता या पारस्परिक द्वारा नियंत्रित होती है जैसे हमें अगर किसी के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए जिससे वे हमारे शत्रु बन जाएँ| समूह के साथ घनिष्टता इस अवस्था की महत्वपूर्ण विशेषता बन जाती है|

4. स्वायत्तता- किशोरावस्था 

पियाजे द्वारा इस अवस्था को साम्यावस्था की अवस्था भी बताया है| इस अवस्था में व्यक्ति पूर्णतः अपने व्यवहार के लिए उत्तर दायी होता है|

कोहलबर्ग की नैतिक तर्कणा की अवस्थाएं 

जब व्यक्तियों को नैतिक संघर्षों का सामना करना पड़ता है तो उनकी तार्किक अधिकता महत्वपूर्ण होती है | कोहालबर्ग ने धारणा बनायी की व्यक्ति तीन स्तरों से गुजरकर अपनी नैतिक तार्किकता की योग्यताओं को विकसित कर पाते हैं|

(i) पूर्व लौकिक स्तर

नैतिक तर्कणा के इस स्तर में वे नियम सम्मिलित होते हैं जिनका निर्माण दूसरों के द्वारा किया जाता है और पालन बालकों के द्वारा |

(ii) लौकिक द्वारा

इस स्तर पर बालक उन नियमों का पालन करते हैं जो उसकी स्वयं की आवश्यकताओं के लिए क्या उचित है, इसमें उचित और पारस्परिकता के तत्व विद्यमान रहते हैं|

(iii) पश्चलौकिक स्तर

व्यक्ति अपने मूल्यों को उन नैतिक सिद्धांतों के रूप में परिभाषित करते हैं जिनका पालन उनके द्वारा चयनित होता है|

खेल द्वारा शिक्षा

  • आधुनिक अर्थशास्त्री शैशवावस्था में खेल प्रणाली से सिखाने पर जोर देते हैं|
  • शिशु की शिक्षा में खेल प्रणाली को लाने पर काल्डवेल कुक ने जोर दिया|

शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा में अनेक प्रकार की खेल प्रणालियां विकसित की हैं जो इस प्रकार हैं -

  1. किंडर गार्टेंन :- जर्मन के प्रसिद्द शिक्षाशास्त्री फ्रोएबेल ने शिशुओं की शिक्षा के लिए इस विधि की स्थापना की| 'किंडरगार्टेंन' शब्द का तात्यपर्य 'उद्यान' से है|
  2. मांटेसरी पद्धति :- इटली की डॉक्टर मारिया मांटेसरी के द्वारा इस शिक्षा पद्दति की स्थापना की गयी थी|
  3. प्रोजेक्ट प्रणाली :- इस विधि का जनक क्लिकपेट्रिक को माना जाता है| अमेरिका में आधुनिक काल में खेल के द्वारा शिक्षा देने की एक नई प्रणाली विकसित की गयी है जिसे प्रोजेक्ट प्रणाली के नाम से जाना जाता है| इस प्रणाली में बालकों को तरह- तरह के प्रोजेक्ट करके के लिए दिए जाते हैं| जान डीवी प्रोजेक्ट प्रणाली के प्रतिपादक हैं परन्तु क्लिपेतट्रिक द्वारा इसको प्रचलित करने के कारण इन्हें ही इस विधि का जनक कहा जाता है|
  4. डाल्टन पद्दति :- इस पद्धति को विकसित करने का श्रेय श्रीमती पार्कहर्स्ट को दिया जाता है| सामाजिकता, स्वतंत्रता तथा व्यक्तिगत कार्य इस विधि के तीन मुख्य अंग हैं| 
  5. ह्यूरिस्टिक प्रणाली :- इस प्रणाली के संस्थापक आर्मस्ट्रांग हैं| इस विधि में बालक आरंभ से ही अनुसन्धान एवं अविष्कार में लग जाते हैं|
  6. बालचर प्रणाली :- इस प्रणाली को बेडेन पावेल द्वारा विकसित किया जाता है|
  7. नाट्य प्रणाली और रसानुभूति पाठ :- वर्तमान भाषा, इतिहास और भूगोल आदि अनेक विषयों को पढ़ने में नाट्य प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है| इसे भी शिक्षा में एक प्रकार से खेल प्रणाली का उपयोग किया जाता  है|

व्यक्तित्व विकास में उपागम

संज्ञानात्मक विकास सम्बन्धी समस्याओं की पहचान तथा उनके उपचार 

संज्ञानात्मक विकास की समस्याओं की पहचान छात्रों की वाचिक और अवाचिक, आव्रत्यात्म्क प्रदर्शन के सतर्क निरीक्षण के द्वारा होती है| बच्चों के व्यवहार में वाचिक रूप से अन्तः क्रिया की खोज एक शिक्षक को ज्ञानात्मक विकास की समस्याओं की प्रकृति की उपयुक्त पहचान कराने में समर्थ बनायेगा|

  • प्रश्न करने के लिए न्यायोचित ठहराने के लिए एवं तर्क करने के लिए एक विस्त्रत क्षेत्र उपलब्ध करना|
  • ज्ञान के लिए पर्याप्त वाचिक और अवचिक व्युक्ति प्रस्तुत करना|
  • अनेक उदाहरणों और सीखने के कार्यों के स्थानांतरण द्वारा ज्ञान के लिए सहायता प्रदान करना|
  • समकक्षी और सामाजिक अन्योंयांक्रिया 
  • सामान्य ज्ञानात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करना 
रविन्द्र नाथ टैगोर जी के अनुसार - "शिक्षा वास्तव में वह ज्ञान है जो हमें मात्र तत्थ्यों की जानकारी नहीं देती बल्कि हमारे जीवन को स्थितियों के अनुकूल चलने योग्य बनाती हैं|" उनके अनुसार सर्वश्रेष्ठ शिक्षा वह है, जिसमें हर तरह की परिस्थितयों के साथ सामंजस्य बनाकर तथा जीवन में अबौद्धिकता एवं क्रियात्मक संतुलन को बनायें रखने की क्षमता हो|

उन्होंने बच्चों के पूर्वं स्वतंत्रता की वकालत की जिससे ह्रदय की निर्मल प्रतिक्रियाएं खुलकर सामने आती हैं| उन्होंने अपने शिक्षा सम्बन्धी विचारों को शांति निकेतन में मूर्त रूप दिया था| टैगोर जी एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की बात करते थे जिसमें विस्तृत मानवता और विश्व बंधुत्व की कल्पना की गयी थी| टैगोर ने इस विधा पर काफी जोर दिया कि बच्चे को गाने, नाचने प्रयोग रूप में पेड़ चढ़ने या खेलने इत्यादि किसी भी रूप में सीखने का अधिकार है| 

CTET/UPTET से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)

1.रविन्द्र नाथ टैगोर जी ने शिक्षा का माध्यम किसे बनाया था? - मातृ भाषा को

2. मरिया मांटेसरी ने कौन सी पद्धति प्रतिपादित की थी? -मांटेसरी पद्धति

3. आदर्श वाद के अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है? -व्यक्तित्व में निहित शक्तियों का पूर्ण विकास

4. बालक के समाजीकारण में सहायक कारक होता है? - सहानुभूति, संसूचन, तदात्मीकरण 

5. टैगोर के अनुसार प्राथमिक शिक्षा कैसी शिक्षा होनी चाहिए? - अनुभव केन्द्रित

6.गाँधी जी ने जिन तीन 'H' की शिक्षा पर बल दिया था, उनमें क्या शामिल है? - ह्रदय, मस्तिष्क, हाथ 

7.पियाजे के द्वारा मानसिक विकास की अवस्था कैसी अवस्था है? - इन्द्रिय जनित गामक अवस्था 

8. कक्षा नियंत्रण की सर्वश्रेष्ट तकनीकि है? - प्रजातान्त्रिक उपागम 

9.शिशु की शिक्षा में खेल प्रणाली पर किसने जोर दिया? - काल्डवेल कुक

10. ज्ञानेन्द्रियों द्वारा शिक्षा देने वाली विधि कौन सी है? - मांटेसरी पद्धति 

11. रविंद्रनाथ टैगोर ने पाठयक्रमीय विषयों के अतिरिक्त किस प्रवृत्ति में भाग लेने पर बल दिया - पाठ्यक्रम सहभागी प्रक्रियाएं

12. बालक के समाजीकरण के प्रमुख तत्त्वों में क्या शामिल है? - वंशानुक्रम एवं पर्यावरण

13. संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया? - पियाजे द्वारा 

14. आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धांतों में क्या सम्मिलित है? - विभिन्नता में एकता

15. बच्चे के सामाजीकरण में के तहत अध्यापक की भूमिका में क्या सम्मिलित होना चाहिए? - बालक के साथ बेदभाव रहित व्यवहार करना एवं बच्चों की जाति, धर्म आदि की आलोचना न करना 

16. कौन-सी शिक्षा योजना गाँधी जी की बुनियादी शिक्षा योजना कहलाई? - वर्धा शिक्षा योजना

17. अधिकाशं छात्र किन शिक्षकों से पढने के लिए बहुत इच्छुक होते हैं? - जो छात्रों की समस्याएं हल करने के में रूचि रखते हैं

18. ऐतिहासिक -सांस्कृतिक विकास का सिद्धांत किस मूल भावना पर आधारित होता है? - अंतर्वैयक्तिक सम्प्रेषण की मूल भावना पर 

19. परिवार में बालक का समाजीकरण बालक की किस प्रवृत्ति के आधार पर होता है? - अनुकरण 

20. राष्ट्रीय शिक्षा निति में केन्द्रित शिक्षा पाठ्यक्रम में क्या सम्मिलित है? - भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का इतिहास, संवैधानिक उत्तरदायित्व, राष्ट्रीय अस्मिता 

21. बालक के समजीकरण हेतु शिक्षा का महत्वपूर्ण कार्य क्या है? - शिक्षक अभिभावक सहयोग विकसित करना

22. स्टर्न के अनुसार खेल क्या है? - खेल एक ऐच्छिक, आत्म पर नियंत्रण करने की क्रिया है 

23. बुनियादी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है? - स्वावलंबी बनाना

24. 'चरित्र निर्माण' समाजीकरण का एक है - पक्ष

25. "अनेकता में एकता" की भावना का विकास" का क्या उद्देश्य है? - आदर्शवाद

26. इतिहास एवं साहित्य को शिक्षा की हर्बर्ट ने क्यों बताया है? - इसके द्वारा बच्चे को अपने अतीत के प्रति जिज्ञासू बनाया जा सकता है |

27. किंडरगार्टन पद्धति में शिक्षा प्रदान करने का प्रमुख माध्यम क्या है? - खेल-खेल में शिक्षा 

28. 'पूर्वत्व को प्राप्त करने का उद्देश्य' शिक्षा का यह लक्ष्य किस भारतीय के द्वारा दिया गया था? - स्वामी विवेकानंद 


दोस्तों उम्मीद है ये कंटेंट पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा यदि आपको और भी इसी तरह बेहतर कंटेंट पढ़ना पसंद करते हैं तो हमें कमेन्ट बॉक्स में बताएं हम आपके लिए बेहतर कंटेट लाने का प्रयास करेंगे |
धन्यवाद |

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