किसी भी देश की Bhugarbhik Sanrachna के अध्ययन के आधार पर अलग-अलग भागों पर कई प्रक्रार की चट्टानों के स्वरूप एवं प्रकृति की जानकारी प्राप्त होती है|
किसी भी देश में खनिज पदार्थों की जानकारी एवं मिट्टियों की बनावट चट्टानों की संरचना के आधार पर होती है| परतदार चट्टानों का निर्माण तलछट में मलवे के जमने से होता है|
Bharat-ki-Bhugarbhik-Sanrachna |
परतदार चट्टानों से बनने वाली मृदा उपजाऊ होती है जबकि प्राचीन रवेदार चट्टानों से बनने वाली मृदा उपजाऊ नहीं होती है|
प्राचीन आर्कियन चट्टाने धात्विक खनिजों के मामले में अधिक धनी होती है| जैसे-सोना, चांदी, लोहा मैगनीज आदि
सागरों में निक्षेपण से बनी परतदार चट्टानों में पेट्रोलियम संपदा की सम्भावना होती है जैसे- खम्भात की खाड़ी, अंकलेश्वर क्षेत्र आदि
भारत में प्राचीनतम एवं नवीनतम दोनों प्रकार की चट्टानें पायी जाती हैं|
प्रायद्वीपीय भारत में आर्कियन युग की प्राचीनतम चट्टानें पायी जाती हैं तथा मैदानी क्षेत्रों में नवीन परतदार चट्टानें पायी जाती हैं| डेल्टाई क्षेत्रों तथा तटीय क्षेत्रों में नवीनतम चट्टानों का निर्माण लगातार जारी है|भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक प्राचीनतम स्थलखंड पैंजिया का हिस्सा है|
प्रायद्वीपीय भारत का उत्तर एवं उत्तर-पूर्वी दिशा में कोर्बोनिफेरस काल से ही प्रवाह जारी है|
यूरेशियाई प्लेट एवं भारतीय प्लेट के आपस में टकराने से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ|
हिमालय पर्वत परतदार चट्टानों से निर्मित नवीन मोड़दार पर्वत तथा प्रायद्वीपीय पठार के बीच गर्मी से नदियों द्वारा निक्षेपित मलवे से ही भारत के विशाल मैदान का निर्माण हुआ|
नवीन मोड़दार पर्वतों का अपरदन सबसे ज्यादा तीव्र गति से हो रहा है इसका कारण यहाँ की मुलायम चट्टानें एवं ढाल तीव्र होना है|
प्रायद्वीपीय भारत की चट्टानें अत्यंत कड़ी होती है लेकिन यहाँ पर लम्बे समय से अपरदन के कारण ढाल काफी मंद हो गयी है जिसके कारण यहाँ की नदियाँ संतुलित एवं चौड़ी घाटी से होकर बहती हैं|
भारत का विशाल मैदान विश्व के विशाल मैदानों में से एक माना जाता है|
भारत के भूगर्भिक संरचना का प्रभाव भारत की स्थलाकृति विकास पर काफी पड़ता है|
भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण
भारतीय चट्टानों को प्रकृति व् निर्माण के आधार पर प्रमुख रूप से 7 भागों में बाटा जाता सकता है|
- आर्कियन समूह की चट्टानें
- कुडप्पा समूह की चट्टानें
- विन्ध्य क्रम की चट्टानें
- गोंडवाना क्रम की चट्टानें
- दक्कन ट्रैप
- टर्शियरी क्रम की चट्टानें
- नवजीव संरचना
आर्कियन क्रम की चट्टानें
- ये धरती की सबसे मुलभूत चट्टानें हैं| इनका निर्माण पृथ्वी के ठंडे होने के कारण हुआ है|
- अर्कियन क्रम की चट्टानों में जीवाश्म का नहीं पाया जाता है|
- अत्यधिक रूपांतरण के कारण इनका मौलिक स्वरूप नष्ट हो चुका है|
- ये निस एवं शिस्ट प्रकार की चट्टानें हैं|
- बुंदेलखंड में नीस सबसे पुरानी चट्टानें हैं|
- हिमालय के गर्मी में रीढ़ की हड्डी के समान ये चट्टानें मौजूद हैं|
धारवाड़ क्रम की चट्टानें
- ये आर्कियन चट्टानों के अपरदन एवं उनके निक्षेपण के कारण बनी हैं|
- ये सबसे प्राचीनतम परतदार चट्टानें है|
- इसमें जीवाश्म का अभाव पाया जाता है|
- अरावली पर्वत और छोटा नागपुर पठार का निर्माण इसी क्रम की चट्टानों से हुआ है|
- इस तरह की चट्टानों का निर्माण कर्नाटक के धारवाड़ जिले में हुआ है|
- पश्चिमी हिमालय के लद्दाख, जास्कर श्रेणी इसी क्रम की चट्टानों से निर्मित है|
- धारवाड़ क्रम की चट्टानें आर्थिक द्रष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं| इन्ही चट्टानों से लोहा, मैगनीज, तांबा, क्रोमियम तथा चांदी आदि धातुएं पायी जाती हैं|
कुडप्पा क्रम की चट्टानें
- धारवाड़ क्रम की चट्टाने अपरदन एवं निक्षेपण के कारण कुडप्पा क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ है|
- ये परतदार चट्टानें हैं इन चट्टानों में जीवाश्म का आभाव पाया जाता है|
- ये चट्टानें पत्थर, चूना- पत्थर, संगमरमर आदि के लिए प्रसिद्द है|
- कुडप्पा क्रम की कुछ चट्टानों में हीरे भी पाए जाते हैं|
- आंध्रप्रदेश के कुडप्पा जिले में इस क्रम की चट्टानों में सोना की उपस्थिति के भी प्रमाण है|
- पूर्वी घाट के निर्माण में कुडप्पा क्रम की चट्टानों से हुआ है|
गोंडवाना क्रम की चट्टाने
- इनका निर्माण उपरी कोर्बोनिफेरस से लेकर जुरेसिक युग के बीच हुआ है|
- भारत का 98 प्रतिशत कोयला इसी संरचना में पाया जाता है|
- इस क्रम की चट्टानों की परते अभी भी क्षैतिज अवस्था में पायी जाती हैं|
- मछलियों तथा रेंगने वाले जीवों के अवशेष गोंडवाना क्रम की चट्टानों में पायी जाती हैं|
दक्कन ट्रैप (Dakkan Trap)
- इनका निर्माण क्रिटैशियस से लेकर इयोसीन युग तक हुआ माना जाता है|
- लावा के प्रवाह के कारण सीढ़ीनुमा आकृति वाली लैंडस्केप का विकास हुआ है|
- इसकी संरचना बेसाल्ट तथा डोलोमाइट चट्टानों से निर्मित है|
- इन चट्टानों के विखंडन से ही कालीमिट्टी का निर्माण हुआ| काली मिट्टी को कपास मिट्टी या रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है|
- दक्कन ट्रैप का सर्वाधिक विस्तार महाराष्ट्र में पाया जाता है|
टर्शियरी क्रम की चट्टानें
- इनका निर्माण इयोसीन युग से लेकर प्लायोसीन युग तक हुआ |
- इसी काल में हिमालय पर्वत श्रंखला का निर्माण हुआ है|
- असम, गुजरात एवं राजस्थान में खनिज तेल इयोसीन एवं ओलिगोसीन संरचना में ही पाये जाते हैं|
- इसी काल में चट्टानों में उत्तरी-पूर्वी, भारत और जम्मू कश्मीर के निम्न स्तरीय कोयले भी पाए जाते हैं|
क्वार्टनरी संरचना
- क्वार्टनरी संरचना सिन्धु एवं गंगा के मैदानी भाग में पायी जाती है|
- मध्य और ऊपरी प्लीस्टोसीन काल में निर्मित पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बांगर कहा जाता है|
- नवीन जलोढ़ मृदा खादर का निर्माण प्लिस्टोसीन काल में हुआ था|
- कच्छ का रण प्लिस्टोसीन काल में समुद्र का एक भाग था|
- दामोदर, महानदी, गोदावरी एवं उनकी सहायक नदियों में गोंडवाना क्रम की चट्टानें पायी जाती हैं|
- पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले समतल उच्च भागों पर लेटेराइट मिट्टी पायी जाती है | मसालों, चाय, कॉफ़ी आदि की खेती इसी मिट्टी में सर्वाधिक की जाती है|
- छोटानागपुर का पठार जिसे हम भारत का प्रदेश भी कहते हैं, क्योकि यहाँ खनिज संसाधनों का विशाल भण्डार है|
महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQs)
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2.चट्टानों का वर्गीकरण कितने भागों में किया गया है? - 7 |
3.भारत में सबसे अधिक ऊँचे क्षेत्र हैं - नवीन मोडदार पर्वत के (Important) |
4.हिमालय पर्वत का निर्माण कैसे हुआ? -नवीन पर्वत श्रखला के कारण |
5.अरावली पर्वत तथा छोटा नागपुर का पठार किस प्रकार की चट्टानों से हुआ? -धारवाड़ क्रम की चट्टानों से |
6.पूर्वी घाट का निर्माण किस प्रकार की चट्टानों से हुआ है? - कुडप्पा क्रम की चट्टानों से |
7.भारत का 98 प्रतिशत कोयला किस प्रकार की संरचना में पाया जाता है? - गोंडवाना (Most Important, SSC, Railway) |
8.दक्कन ट्रैप का विस्तार कहाँ पर पाया जाता है? -महाराष्ट्र |
9.क्वार्टनरी संरचना किस मैदानी भाग में पायी जाती है? -सिन्धु एवं गंगा |
10.भारत का प्रदेश किसे कहा जाता है? - छोटा नागपुर का पठार (Important for SSC, Railway) |
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